Thursday, October 14, 2010
सीने पर आस्था की ज्योत
जांजगीर-चाम्पा जिले के टेम्पल सिटी शिवरीनारायण के थाना चौक के पास दुर्गा पंडाल में सारंगढ़ के बाबा संतराम ने सीने पर आस्था की ज्योत जलाई है, जिसे देखने लोगों की भीड़ उमड़ रही है। इससे पहले वे कई शक्तिपीठो में इस तरह आस्था प्रदर्शित कर चुके हैं। शारीर पर जवारा बो कर पुरे नौ दिन वे माँ नवदुर्गा की भक्ति में लीन रहते हैं। आज की इस कलयुग में इस तरह आस्था की मिसाल विरले ही पेश कर पाते हैं।
Wednesday, October 13, 2010
Sunday, October 10, 2010
कचरा बाई : हौसले का एक नाम
महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। एम् ए राजनीति में शिक्षा लेने वाली कचरा बाई हर किसी से जुदा लगती है, क्योंकि उसका कद ढाई फीट है। कुदरत ने कचरा बाई को भले ही कद काठी कम दिया हो, लेकिन उसके हौसले की उड़ान के आगे यह कमजोरी नहीं बन सकी। उसने कंप्यूटर की भी शिक्षा लेकार यह साबित कर दिया है कि जहाँ चाह होती है। वहां राह खुद बन जाती है। लोगों के बीच कचरा बाई को जैसा सम्मान मिलना चाहिए, बचपन से उसके कद के नसीब नहीं हो सका । हालांकि अब वह समय बीत चूका है और वाही लोग कचरा बाई कि क़ाबलियत कि तारीफ करते नहीं थकते।
चाम्पा के नयापारा की रहने वाली कचरा बाई के परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई और तीन बहने हैं। उसका पिता और मां बीमार रहती है। इस तरह वह और उसका छोटा भाई रामचरण जैसे-तैसे परिवार कि गाड़ी को खिंच रहे हैं। कचरा बाई ने कई बार मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को रायपुर जाकर जनदर्शन कार्यक्रम में अपनी योग्यता और समस्या के बारे में बता चुकी हैं। मुख्यमंत्री ने लिखित में भी उसे उसकी योग्यता के लिहाज से शिक्षाकर्मी बनाने जांजगीर-चाम्पा जिले के अफसरों को निर्देश दिए हैं, लेकिन जिले के अधिकारी हैं कि नियमों की दुहाई देकर उसे नौकरी सेने बच रहे हैं। कचरा बाई ने ना जाने कितनी बार राजधानी रायपुर और जांजगीर कलेक्टोरेट के चक्कर कटी है। अभी हाल ही में कचरा बाई जनदर्शन कार्यक्रम में जाकर मुख्यमंत्री से फिर मिली, एक बार उसे और दिलासा दिलाया गया है की उसे जल्द ही नौकरी मिल जाएगी।
कचरा बाई ने नौकरी पाने की वह योग्यता हासिल की है, जिसके बदौलत उसके परिवार जीने का सहारा मिल जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिस हौसले के साथ वह जीवन पथ पर आगे बढ़ रही है, इसमें शासन स्टार पर सहयोग की जरुरत उसे है, मगर लालफीताशाही के आगे उसका कुछ बस नहीं चल रहा है। हालांकि जिले के कलेक्टर ब्रजेश चन्द्र मिश्रा ने कचरा बाई की समस्या को देखते हुए कलेक्टोरेट में ही कोई नौकरी देने का उसे दिलासा दिया है। अब देखना होगा की जो ढाई फीट का कद रख कर समाज को सन्देश का कार्य करने वाली कचरा बाई के हित में कुछ होता है की नहीं।
Saturday, October 9, 2010
जांजगीर की जलपरी, अंजनी पटेल
कामनवेल्थ गेम्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी अंजनी पटेल के जज्बे को सलाम। विकलांग होने के बाद भी तैराकी स्पर्धा में जिस ढंग से अंजनी ने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया, उससे हर छत्तीसगढ़ वासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। भले ही अंजनी को कामनवेल्थ गेम्स में ५० और १०० मीटर तैराकी स्पर्धा में कोई पदक ना मिला हो, लेकिन जिस तरह अंजनी ने अपनी प्रतिभा के बल पर दोनों स्तरों में फ़ाइनल में जगह बनाई। उससे परिवार के साथ-साथ प्रदेश का नाम भी रौशन हुआ है। अंजनी ने मिटटी के तालाब से तैराकी का सफर शुरू कर कामनवेल्थ गेम्स के स्विमिंग पूल तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की है।
तैराकी में विदेशी धरती चीन के बीजिंग तक में भारत का झंडा ऊँचा कर चुकी अंजनी पटेल मूलतः जांजगीर चाम्पा जिले के बलौदा की रहने वाली है। यहाँ के छोटे से तालाब में वह रोज तैरा करती थी। विकलांग होने के बाद भी उसके हौसले को देखकर कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाता था। अंजनी, एक ऐसे परिवार से है, जहाँ तैराकी क्षेत्र में आगे बढ़ने में दिक्कत्तें रही हैं। अंजनी के पिता शत्रुहन पटेल, पेशे से बस ड्राईवर है, यही कारण था की उसे शुरूआती दौर में तैराकी में आगे बढ़ने कठिन दौर से गुजरना पड़ा। हालाँकि बाद में उसकी मेहनत और किस्मत ने साथ देना शुरू किया और उसने देखते ही देखते कई पुरस्कार तैराकी में हासिल कर लिए। पिछले साल अंजली पटेल ने चीन के बीजिंग में अपनी तैराकी प्रतिभा का जौहर दिखाया और इसके बाद तो वह मीडिया में अपनी उपलब्धि को लेकर छाई हुई है।
बिलासपुर कलेक्टर ने अंजनी पटेल के हौसले को देखकर उसे प्रशिक्षण दिलाने व पढाई लिखाई की जिम्मेदारी ले ली. इसके बाद अंजनी को सभी सुविधाएँ दी जा रही है। बिलासपुर के संजय तरन पुष्कर में प्रशिक्षक सूरज यादव से वह तैराकी के गुण सीख रही है।
मेरी ओर से अंजनी पटेल को हार्दिक शुभकामनायें। वह नित इसी तरह तैराकी और जीवन पथ पर आगे बढती रहे तथा छत्तीसगढ़ और जिले का नाम रोशन करती रहे।
तैराकी में विदेशी धरती चीन के बीजिंग तक में भारत का झंडा ऊँचा कर चुकी अंजनी पटेल मूलतः जांजगीर चाम्पा जिले के बलौदा की रहने वाली है। यहाँ के छोटे से तालाब में वह रोज तैरा करती थी। विकलांग होने के बाद भी उसके हौसले को देखकर कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाता था। अंजनी, एक ऐसे परिवार से है, जहाँ तैराकी क्षेत्र में आगे बढ़ने में दिक्कत्तें रही हैं। अंजनी के पिता शत्रुहन पटेल, पेशे से बस ड्राईवर है, यही कारण था की उसे शुरूआती दौर में तैराकी में आगे बढ़ने कठिन दौर से गुजरना पड़ा। हालाँकि बाद में उसकी मेहनत और किस्मत ने साथ देना शुरू किया और उसने देखते ही देखते कई पुरस्कार तैराकी में हासिल कर लिए। पिछले साल अंजली पटेल ने चीन के बीजिंग में अपनी तैराकी प्रतिभा का जौहर दिखाया और इसके बाद तो वह मीडिया में अपनी उपलब्धि को लेकर छाई हुई है।
बिलासपुर कलेक्टर ने अंजनी पटेल के हौसले को देखकर उसे प्रशिक्षण दिलाने व पढाई लिखाई की जिम्मेदारी ले ली. इसके बाद अंजनी को सभी सुविधाएँ दी जा रही है। बिलासपुर के संजय तरन पुष्कर में प्रशिक्षक सूरज यादव से वह तैराकी के गुण सीख रही है।
मेरी ओर से अंजनी पटेल को हार्दिक शुभकामनायें। वह नित इसी तरह तैराकी और जीवन पथ पर आगे बढती रहे तथा छत्तीसगढ़ और जिले का नाम रोशन करती रहे।
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