Monday, June 13, 2011

सब्जी बेचने वाली ने बनवाया ‘इंसानियत का अस्पताल’

आशीष कुमार ‘अंशु’ ( कोलकाता )
इलाज के अभाव में पति की मौत हुई, तब सुभाषिनी मिस्त्री के पास पूंजी के नाम पर सिर्फ 90 पैसे थे, लेकिन सब्जी बेचने वाली इस महिला ने 23 बरस में पाई-पाई जोड़कर बनवाया अस्पताल।
यह एक आम महिला के बुलंद हौसलों की कहानी है। उसने तय किया था कि जिस अभिशाप ने उसका सुहाग उजाड़ा, वह उसे किसी और का नुकसान करने नहीं देगी, इस संकल्प को 40 बरस हो रहे हैं। कोलकाता के ‘हंसपुकेड़’ में सब्जी बेचने वाली सुभाषिनी मिस्त्री गरीबों के लिए सौ बिस्तरों वाला निःशुल्क अस्पताल चलाती हैं। नाम है - ‘ह्यूमेनिटी हॉस्पिटल’। अनपढ़ सुभाषिनी ने अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया, जो अब अस्पताल का व्यवस्थापक है।

समाज हित में लिए गए संकल्प की कहानी शुरू होती है, वर्ष 1971 से, जब सुभाषिनी के पति, 35 साल के कृषि मजदूर साधन मिस्त्री को इलाज के अभाव में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इतने पैसे ही नहीं थे कि उनका इलाज करवाया जा सके। तब सुभाषिनी ने मुक्त अस्पताल बनवाने का संकल्प लिया था, ताकि किसी को गरीबी के कारण जान गंवानी न पड़े। वे याद करती हैं कि उस समय उनकी उम्र थी, 23 साल। पति छोड़ गए थे चार बच्चे। सबसे बड़ा नौ तथा सबसे छोटा तीन साल का था। उन दिनों वे कोई काम नहीं करती थीं। जमापूंजी के नाम पर थे, सिर्फ 90 पैसे। भातेर पानी ( माड़-चावल का पानी ) के लिए कई बार पड़ोसियों के सामने हाथ पसारना पड़ता था। कई बार उन्होंने घास उबालकर नमक के साथ बच्चों को खिलाई। ऐसे बुरे दिनों में जब वे अस्पताल बनवाने का सपना बतातीं, तो लोग उल पर हंसते थे।

परिवार पालने के लिए उन्होंने दूसरों के घरों में झाडू-पोंछा करना शुरू किया। फिर जब थोड़े पैसे इकट्ठा हुए तो सब्जी की दुकान डाल ली। काम कुछ भी किया, लेकिन थोड़े-थोड़े पैसे अपने अस्पताल के लिए भी जमा करती रहीं। पाई-पाई जोड़ती रही और सपना पलता रहा। इस साधना को चलते करीब 21 बरस हो गए। 1992 में उन्होंने अस्पताल के नाम पर एक बीघा जमीन खरीद ली। 1994 में एक अस्थायी अस्पताल शुरू हो गया। दो हजार वर्गफुट जमीन पर यह मुफ्त अस्पताल प्रारंभ हुआ। अब मदद के हाथ भी बढ़ने लगे। आज अस्पताल के पास अपनी 15 हजार वर्गफुट जमीन, दुमंजिला इमारत, मरीजों के लिए 100 बिस्तर और ऑपरेशन थियेटर हैं। इसकी चर्चा बंगाल भर में है। यहां प्रतिदिन 50-60 मरीज पहुंचते हैं। रविवार के दिन यह संख्या 150 भी हो जाती है। कई बार 50-100 किमी की दूरी से भी मरीज गांव के अस्पताल में पहुंचे हैं। अस्पताल का सारा काम सुभाषिनी के बेटे डॉ. अजॉय मिस्त्री देख रहे है, जिन्हें मां ने डॉक्टर बनाया। अजॉय बताते हैं कि अब वे अस्पताल को दूसरों के दान पर कम से कम निर्भर रखना चाहते हैं।, इसलिए सौ में से 50 बेड में ही निःशुल्क रखने की योजना बनाई गई है, ताकि जरूरतमदों की जरूरत भी पूरी हो और बाकी पचास बिस्तरों से आया धन अस्पताल के रखरखाब में खर्च किया जा सके।

मुझे अहसास है उस दर्द का
मैं जानती हूं कि किसी को खोने का दर्द क्या होता है। मैंने इलाज के अभाव में अपना पति खोया है। इसलिए चाहत हूं कि इलाज न करा पाने की मजबूरी में किसी को अपना प्रियजन न खोना पड़े।
- सुभाषिनी मिस्त्री जी, समाजसेवी।

साभार - दैनिक भास्कर, 12 जून 2011

Thursday, June 9, 2011

26 बरसों से पिला रहा प्यासों को पानी

समाज सेवा की दिशा में वैसे तो कई तरह के अनुकरणीय कार्यों की बानगी आए दिन सुनने को मिलती है और उनके कार्यों से समाज के लोगों को निश्चित ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसी ही मिसाल कायम कर रहे हैं, जिला मुख्यालय जांजगीर से लगे नैला के श्री गोविंद सोनी। वे पिछले 26 बरसों से निःस्वार्थ ढंग से नैला रेलवे स्टेशन में गर्मी के दिनों में यात्रियों को पानी पिलाते रहे हैं। बरसों से जारी उनके जज्बे को देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है, क्योंकि ढलती उम्र के बाद भी उनके चेहरे पर कहीं थकान नजर नहीं आती और वे पूरी उर्जा के साथ समाज सेवा में हर पल तल्लीन नजर आते हैं।
श्री सोनी ने बताया कि बचपन से ही उनके मन में समाज के उत्थान तथा नीचले तबके के लोगों के हितों की दिशा में कुछ कर गुजरने की ललक रही है। शास्त्रों में भी लिखा है कि प्यासों को पानी पिलाना पुण्य का कार्य है। स्टेशन में पानी पीने के लिए प्याउ तो होती हैं, मगर ट्रेन छूटने के डर के कारण अधिकतर यात्री पानी पीने प्याउ तक जाने जहमत नहीं उठाते और प्यासे ही गंतव्य तक चले जाते हैं। ऐसे हालात में उनकी कोशिश रहती है कि प्लेटफार्म पर ट्रेन आने के बाद ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को पानी पिला लें और इसके लिए ट्रेन आने के पहले ही तैयारी कर ली जाती हैं।
उन्होंने बताया कि जब वे 30 बरस के थे, तब वे आरएसएस के एक कार्यक्रम में शामिल होने हरियाणा गए थे। वहां उन्होंने देखा कि कैसे लोगों में सेवा भावना है। लोगों को पानी तथा भोजन निःशुल्क दिया जाता है, इस प्रेरणादायी पल को देखने के बाद उनके मन में विचार आया कि क्यों न, लोगों के सूखे कंठों की प्यास बुझाने के काम में लगा जाए। श्री सोनी ने बताया कि गर्मी के तीन महीने वे नैला स्टेशन में पानी पिलाने का कार्य करते हैं, इस दौरान जब टेªेनों का आना नहीं होता, उस समय नैला के ही बस स्टैण्ड में यात्रियों को पानी पिलाया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि स्टेशन में चार प्लेटफार्म हैं और उन्हें प्लेटफार्म नं. 4 में ज्यादा दिक्कतें होती हैं, क्योंकि वहां न तो रेलवे का प्याउ है और न ही, कोई हैण्डपंप। लिहाजा पास के मोहल्ले के हैण्डपंप से पानी लाना पड़ता है। हालांकि इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं रहता। उनका कहना है कि प्यासे यात्रियों को पानी पिलाने से उन्हें आत्मीय खुशी होती है और थकान को कहीं कोई आभाष नहीं होता। वे स्टेशन में मटका भी लाकर रखते हैं और दो बाल्टी के माध्यम से यात्रियों को पानी पिलाने में पूरे समय लगे रहते हैं। प्यासों को पानी पिलाने के यज्ञ में उन्हें परिवार के लोगों का भी पूरा सहयोग मिलता है। श्री सोनी ने बताया कि परिवार के लोगों ने कभी नहीं टोका, बल्कि उनके बेटों ने कई बार स्टेशन पहुंचकर उनका हाथ भी बंटाया। उनकी पत्नी श्रीमती मीरा सोनी भी चाहती है, वह स्टेशन जाकर लोगों को पानी पिलाए, जिससे उन्हें भी पुण्य का लाभ मिले। हालांकि वे अब तक अपने पति के अनुकरणीय कार्यों में सीधे तौर पर हाथ नहीं बंटा सकी हैं, मगर श्री सोनी के मनोबल को बढ़ाने में उनका योगदान होता है।


शिक्षा दान में भी पीछे नहीं
रेलवे स्टेशन में यात्रियों को पानी पिलाने के अलावा श्री गोविंद सोनी शिक्षा दान करने में भी पीछे नहीं है। गर्मी खत्म होते ही शिक्षा सत्र शुरू होने के बाद वे सरस्वती शिशु मंदिर समेत आसपास मोहल्लों के सरकारी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाते भी हैं। इस तरह की परिपाटी बरसों से चली आ रही है, यह सब कार्य उनकी दिनचर्या में ही शामिल हो गया है।


...बात निकली तो दूर तलक जाएगी
यात्रियों को पानी पिलाकर मिसाल बने श्री सोनी के उल्लेखनीय कार्यों का प्रभाव भी लोगों के जेहन पड़ा है। इन 26 बरसों में अनेक लोगों ने उनके साथ जाकर यात्रियों को पानी पिलाने का कार्य किए हैं, हालांकि वे अपना यह यज्ञ अनवरत जारी नहीं रख सके। इस बरस नैला के रामावतार अग्रवाल ने भी श्री सोनी के साथ पानी पिलाने का बीड़ा उठाया। उनका कहना है कि वे कई बरसों से देखते आ रहे हैं कि श्री सोनी किस तरह तकलीफ झेलकर भी लोगों की सेवा करते आ रहे हैं। यही बात उन्हें भी स्टेशन तक खींच लाई और वे भी उनके साथ मिलकर यात्रियों की प्यास बुझाने में सहयोग दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है। साथ ही मन को तसल्ली भी है कि जीवन में आएं हैं तो कुछ तो समाज के लिए कर पा रहे हैं।


शास्त्री जी हैं प्रेरणास्त्रोत
श्री सोनी के प्रेरणास्त्रोत पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हैं। उनके कार्यों से इतने प्रभावित हैं कि वे हर दिन अपने घर में भगवान की तरह उनकी पूजा करते हैं। स्व. शास्त्री की तस्वीर अपने घर के कमरे में लगाकर रखे हुए हैं, जहां बरसों से उनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। श्री सोनी का कहना है कि जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे, उस दौरान उन्होंने देश में अनाज की बढ़ती किल्लत को देखते हुए अवाम को हफ्ते में एक दिन उपवास करने का आह्वान किया था, जिसके कारण अनाज की समस्या उस दौरान खत्म हो गई। यही बात श्री सोनी को प्रभावित कर गई और वे उनके अनुयायी बन गए।