Saturday, December 4, 2010

मंद बुध्धी और कलम के प्रति लगाव

अक्सर कहा जाता है कि कलम की धार, तलवार से भी तेज होती है। जांजगीर में घूम रहे इस मंदबुद्धि के व्यक्ति का कलम के प्रति लगाव है और वह कुछ लिखने की चाहत लिए बैठा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि कोई भी परिस्थिति में कलम की ताकत कम नहीं हो सकती है। मंदबुद्धि होने के कारण यह व्यक्ति सब कुछ तो भूला चुका लगता है, लेकिन उसका कलम के प्रति लगाव बरकरार है। यह कई मायनों में अहम है और समाज को संदेश देता है।

Monday, November 22, 2010

पोस्ट ग्रेजुएट संदीप की खेती और देशभक्ति


वर्तमान दौर में युवा कार्पोरेट जगत में भविष्य तलाश रहे है और कृषि प्रधान देश में खेती किसानी को दोयम दर्जे का कार्य समझा जा रहा है, वहीं एक युवा किसान ऐसा भी है, जिसने तमाम डिग्रियां हासिल करने के बाद भी कृषि कार्य को अपना जॉब बनाकर पिछले 8 वर्षो से नई पद्धति से खेती करते हुए नई मिसाल पेश की है। इस युवा किसान ने इस वर्ष धान की फसल में हिन्दुस्तान व छत्तीसगढ़ का नक्शा उकेरा है, जिसे देखने के बाद लोग उनकी तारीफों के पुलिंदे बांधते नहीं थक रहे हैं। कृषि क्षेत्र में यह अनोखा कारनामा जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर ग्राम मेहंदा के युवा किसान संदीप तिवारी ने कर दिखाया है। प्रारंभ से ही खेती किसानी में रूचि रखने वाले संदीप ने बीकॉम, एलएलबी व एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी कृषि के क्षेत्र में ही अपना भविष्य बनाने की ठान ली। पढ़ाई के दौरान वे कृषि कार्य की बारीकियांे को अपने पिता सुरेशचंद्र तिवारी से सीखने लगे। यही नहीं वे जब भी अपने नाना राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला के यहां ग्राम कुम्हारी जाते थे, वहां खेती किसानी के विषय में चर्चा कर आवश्यक जानकारी जुटाते थे। इस कार्य में उनके मामा सुनील शुक्ला और अजय शुक्ला ने भी पूरा सहयोग किया। कृषि जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए संदीप ने 8 वर्ष पूर्व किसानी के क्षेत्र में पहली बार अपना कदम रखा। उस वक्त संदीप के लिए खेती-किसानी का काम काफी परेशानी भरा रहा, बावजूद इसके खुद के आत्मविश्वास और परिजनों के हौसले से धान बोआई कराकर संदीप ने अच्छी फसल अर्जित की। इसके बाद वे हर साल कुछ नया करते रहे। दो वर्ष पूर्व उन्होंने बीज विकास निगम से हाइब्रिड बीज खरीदकर खेती की, जिसमें भारी सफलता मिली। इससे संदीप के हौसले और बुलंद होने लगे तथा खेती किसानी के काम में वे पारंगत हो गए। नतीजतन गांव व आसपास के कई किसान उससे खेती किसानी की सलाह लेने लगे। इस वर्ष धान बोआई से पहले ही इस क्षेत्र में कुछ नयापन लाने की बात उनके मन में सूझी और उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए संदीप ने गांव के जगदीश साहू, भारत यादव तथा दुकालू यादव का सहयोग लिया। 3 से 4 दिन तक खासी मेहनत कर संदीप ने अपने साथियों के साथ रोपाई पद्धति से धान लगाकर दो खेतों में भारत व छत्तीसगढ़ का नक्शा उकेरा। 80 डिसमिल के एक खेत में संदीप ने धान के पौधे को छत्तीसगढ़ के नक्शे के आकार में रोपाई की। साथ ही इसमें जय जवान, जय छत्तीसगढ़ का स्लोगन भी लिखा। नक्शा तैयार करने के लिए उन्होंने काले रंगों वाली बारीक प्रजाति की श्यामला तथा स्लोगन के लिए सुवर्णा धान के पौधों की रोपाई की। इसी तरह एक एकड़ भूमि पर लगी फसल में भारत का नक्शा उकेरने के लिए मुख्य फसल सुवर्णा का लिया। साथ ही जय भारत स्लोगन बनाने के लिए श्यामला धान के पौधे लगाए हैं। संदीप के दोनों खेतों में छत्तीसगढ़ व भारत का नक्शा तथा स्लोगन स्पष्ट नजर आ रहे हैं, जिसे वहां से होकर गुजरने वाले लोग देखकर इस कलाकार के इस प्रयोग की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
युवा कृषक संदीप तिवारी ने बताया कि नई विधि से खेती करने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र जांजगीर के वैज्ञानिक मनीष कुमार व उद्यानिकी विभाग के श्री रोहिदास से सहयोग लिया। वे हर साल कुछ नया करना चाहते हैं। श्री तिवारी ने बताया कि खेत में नक्शा उकेरने के कारण उन्हें धान कटाई में थोड़ी बहुत परेशानी जरूर होगी, लेकिन इस बात पर उन्हें प्रसन्नता है कि उनके इस प्रयोग को देखने के बाद लोगों के मन में कृषि के क्षेत्र को अपनाने की ललक पैदा हो रही है। छोटे से गांव का यह युवा किसान निश्चित ही आने वाले दिनों में कृषि जगत से जुड़े लोगों के लिए प्रेरणादायी साबित होगा।
अगली बार पावर प्लॉट का नक्शा
युवा कृषक संदीप का मानना है कि आज हर कोई खेती किसानी से अपना दामन छुड़ाने लगा हुआ है। इस वजह से खेती में गिरावट आ रही है। प्रदेश को पावर हब बनाने के लिए हर जिलों की तरह जांजगीर व आसपास के क्षेत्र में पावर प्लॉट स्थापित करने तीन दर्जन से ज्यादा एमओयू हो चुके हैं। क्षेत्र में भारी संख्या में पावर प्लॉट लगने से वह दिन दूर नहीं जब धरती पुत्रों को अपनी जन्मभूमि को छोड़कर पलायन करने के लिए विवश होना पड़ेगा। औद्योगिकीकरण से होने वाली हानि पर फोकस डालने के लिए संदीप अगली बार खेत में धान की फसल से पावर प्लॉट व उससे निकलने वाले धुएं को उकरने की बात कह रहे हैं, ताकि उसे देखकर हर किसान व नई पीढ़ी प्रेरणा ले। साथ ही सरकार को किसानों का दर्द महसूस हो सके।

Thursday, November 18, 2010

बलिराम ने बनाई लकड़ी की सायकल


महंगाई ने जहां एक ओर आम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। वहीं आम आदमी को अपने बच्चों के लिए सामान जुटाने में पसीना छूट जाता है। ऐसी महंगाई से निपटने के लिए यह सायकल उन लोगों के लिए कारगर साबित हो सकती है, जो अपने बच्चों को बड़ी कंपनियों की महंगी सायकलें खरीद कर नहीं दे सकते। जी हां यह है लकड़ी की सायकल, जिसे पौना गांव के युवक बलिराम कष्यप ने बनाया है। बाजार में बिक रही सायकलों के दाम 3000 रूपए से कम नहीं हैं, लेकिन बलिराम ने जो सायकल बनाई है उसकी लागत मात्र 1000 रूपए है, मजबूती इतनी कि तीन लोग भी इस पर आराम से सवारी कर सकते हैं।जांजगीर से 25 किलोमीटर दूर विकासखंड अकलतरा गांव के युवक बलिराम कष्यप ने बबूल की लकड़ी से नायाब सायकल बनाई है, जो देखने में तो आकर्शक है ही, मजबूत भी है। सायकल के अधिकतर हिस्से लकड़ी से ही बने हैं और इसकी लागत है सिर्फ 1000 रूपए। महंगाई के इस दौर में बलिराम की यह सायकल आम लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है। क्योंकि बड़ी कंपनियों की सायकलों के दाम अब आसमान छूने लगे हैं। आर्थिक परेषानी से जूझ रहे परिवार की वजह से उसने 10 वीं तक पढ़ाई की और स्कूल की फीस न भर पाने के कारण उसने पढ़ाई भी छोड़ दी और जुट गया परिवार से विरासत से मिले पेषे को संभालने।सोफासेट, पलंग, खाट, दरवाजे और लकड़ी के सामानों की कारीगरी करने के दौरान उसके पास रखी दो सायकलें भी टूट गई और उसने अपने लिए लकड़ी की सायकल बनाने की ठान ली। 10 घंटों की मेहनत से आखिरकार उसने एक सायकल बना ही ली। युवक बलिराम जब इस सायकल पर गांव मंे निकलता है तो बच्चे, बूढ़े और जवान उसकी सायकल से आकर्शित तो होते ही हैं, उसे चलाकर और उस पर सवारी करके मजा भी लेते हैं। बलिराम की कहना है कि वह अब लकड़ी का आटो बनाएगा, जिसमें 8 लोग आराम से सफर कर सकेंगे और उसकी लागत होगी सिर्फ 20 हजार रूपए। उसका दावा है कि लकड़ी की आटो एक लीटर पेट्रोल में 50 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय कर सकेगी। लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसे आर्थिक मदद की जरूरत है। लकड़ी की साइकल बनाने वाले कारीगर बलिराम के पिता षिवकुमार कष्यप् का कहना है कि वह भी बढ़ई है, लेकिन उसका बेटा उससे कहीं आगे निकल गया है और उसे बस एक प्रोत्साहन की जरूरत है। पौना गांव के होनहार युवक बलिराम के इस प्रयास से ग्रामीण भी खुष हैं। आगे चलकर वह लकड़ी से बने सायकल आम लोगों के लिए उपलब्ध कराना चाहता है, लेकिन उसे सरकारी मदद की दरकार है। सरकार से आर्थिक मदद मिलने पर वह अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग कर सकेगा ऐसा उसका विष्वास है।

निषानेबाजी में महारत मनीष

निशानेबाजी में देश भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अभिनव बिंद्रा के नक्शे कदम पर जिले के पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत भी है, जिसने हाल ही में माना में आयोजित स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक हासिल किया है। राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में इस जवान को अब तक 18 पदक मिल चुके हैं।पुलिस लाइन जांजगीर में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत की पहचान एक अच्छे निशानेबाज के रूप में है। इस जवान ने 29 अक्टूबर से 3 नवंबर तक माना रेंज में पुलिस अकादमी व जिंदल स्टील पाॅवर लिमिटेड रायगढ़ द्वारा आयोजित स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में शामिल प्रदेश भर के 300 से भी अधिक निशानेबाजों को पछाड़कर एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक हासिल किया है। चार दिवसीय स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में पुलिस विभाग की ओर से सफलता हासिल करने वाले आरक्षक मनीष ने बताया कि प्रतियोगिता के पहले दिन प्रेक्टिस कराया गया, जिसमें उसे 10 राउण्ड के लिए समय दिया गया। दूसरे दिन सभी प्रतिभागियों को बारी-बारी निशानेबाजी का मौका दिया गया, जिसमें अधिकांश प्रतिभागी असफल होकर प्रतियोगिता से बाहर हो गए। तीसरे व चैथे दिन फाइनल प्रतियोगिता हुई, जिसमें पुलिस व सिविल के 11 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, लेकिन स्वर्ण पदक प्राप्त करने का गौरव आरक्षक मनीष ने प्राप्त किया। आरक्षक मनीष ने बताया कि इस प्रतियोगिता में राइफल दुरूस्त नहीं होने से उन्हें काफी परेशानी हुई, लेकिन जीत को लक्ष्य मानकर उसने अपना प्रदर्शन किया। चैम्पियनशिप के समापन के मौके पर प्रदेश के डीजीपी विश्वरंजन ने उसे एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक प्रदान कर सम्मानित किया। आरक्षक मनीष ने बताया कि एनसीसी कैम्प से प्रारंभ हुई निशानेबाजी का अभ्यास अब तक लगातार जारी है। यहीं वजह है कि मनीष ने विभिन्न राज्यों में आयोजित राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में अचूक निशाना लगाकर चार स्वर्ण, 6 रजत व 8 कांस्य हासिल करते हुए कीर्तिमान रचा है।
राष्ट्रीय स्पर्धा में मिला मौकास्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण व कांस्य पदक प्राप्त करने के बाद ग्राउण्ड से ही आरक्षक मनीष का चयन आगामी 3 जनवरी को तमिलनाडु में आयोजित आॅल इंडिया शूटिंग चैम्पियनशिप के लिए हुआ है। इस प्रतियोगिता में पुलिस विभाग की ओर से गठित प्रदेश स्तरीय टीम में शामिल होकर आरक्षक मनीष अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में उसकी भागीदारी तय होने से न केवल जिले बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए भी बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
घर से मिल रहा प्रोत्साहन
निशानेबाजी में कीर्तिमान रचने वाले मनीष बताते हैं कि जीवन के हर पल में उसे अपनों का प्रोत्साहन व सहयोग मिलता रहा है। उनके पिता डाॅ व्हीपी राजपूत ने उसे हमेशा प्रोत्साहित किया। वहीं पुलिस विभाग में ही प्लाटून कमान्डर के पद पर कार्यरत् उनके चाचा मनोज राजपूत व राजनांदगांव में आरक्षक के पद पर पदस्थ बड़े भाई राजेश राजपूत ने शूटिंग की बारीकियां सिखाई।

Thursday, October 14, 2010

सीने पर आस्था की ज्योत

जांजगीर-चाम्पा जिले के टेम्पल सिटी शिवरीनारायण के थाना चौक के पास दुर्गा पंडाल में सारंगढ़ के बाबा संतराम ने सीने पर आस्था की ज्योत जलाई है, जिसे देखने लोगों की भीड़ उमड़ रही है। इससे पहले वे कई शक्तिपीठो में इस तरह आस्था प्रदर्शित कर चुके हैं। शारीर पर जवारा बो कर पुरे नौ दिन वे माँ नवदुर्गा की भक्ति में लीन रहते हैं। आज की इस कलयुग में इस तरह आस्था की मिसाल विरले ही पेश कर पाते हैं।

Wednesday, October 13, 2010

अंजनी पटेल के जज्बे को सलाम

छत्तीसगढ़ अखबार रायपुर के चौपाल में १० अक्टूबर को प्रकाशित लेख।

Sunday, October 10, 2010

कचरा बाई : हौसले का एक नाम


महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। एम् राजनीति में शिक्षा लेने वाली कचरा बाई हर किसी से जुदा लगती है, क्योंकि उसका कद ढाई फीट है। कुदरत ने कचरा बाई को भले ही कद काठी कम दिया हो, लेकिन उसके हौसले की उड़ान के आगे यह कमजोरी नहीं बन सकी। उसने कंप्यूटर की भी शिक्षा लेकार यह साबित कर दिया है कि जहाँ चाह होती है। वहां राह खुद बन जाती है। लोगों के बीच कचरा बाई को जैसा सम्मान मिलना चाहिए, बचपन से उसके कद के नसीब नहीं हो सका हालांकि अब वह समय बीत चूका है और वाही लोग कचरा बाई कि क़ाबलियत कि तारीफ करते नहीं थकते।
चाम्पा के नयापारा की रहने वाली कचरा बाई के परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई और तीन बहने हैं। उसका पिता और मां बीमार रहती है। इस तरह वह और उसका छोटा भाई रामचरण जैसे-तैसे परिवार कि गाड़ी को खिंच रहे हैं। कचरा बाई ने कई बार मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को रायपुर जाकर जनदर्शन कार्यक्रम में अपनी योग्यता और समस्या के बारे में बता चुकी हैं। मुख्यमंत्री ने लिखित में भी उसे उसकी योग्यता के लिहाज से शिक्षाकर्मी बनाने जांजगीर-चाम्पा जिले के अफसरों को निर्देश दिए हैं, लेकिन जिले के अधिकारी हैं कि नियमों की दुहाई देकर उसे नौकरी सेने बच रहे हैं। कचरा बाई ने ना जाने कितनी बार राजधानी रायपुर और जांजगीर कलेक्टोरेट के चक्कर कटी है। अभी हाल ही में कचरा बाई जनदर्शन कार्यक्रम में जाकर मुख्यमंत्री से फिर मिली, एक बार उसे और दिलासा दिलाया गया है की उसे जल्द ही नौकरी मिल जाएगी।
कचरा बाई ने नौकरी पाने की वह योग्यता हासिल की है, जिसके बदौलत उसके परिवार जीने का सहारा मिल जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिस हौसले के साथ वह जीवन पथ पर आगे बढ़ रही है, इसमें शासन स्टार पर सहयोग की जरुरत उसे है, मगर लालफीताशाही के आगे उसका कुछ बस नहीं चल रहा है। हालांकि जिले के कलेक्टर ब्रजेश चन्द्र मिश्रा ने कचरा बाई की समस्या को देखते हुए कलेक्टोरेट में ही कोई नौकरी देने का उसे दिलासा दिया है। अब देखना होगा की जो ढाई फीट का कद रख कर समाज को सन्देश का कार्य करने वाली कचरा बाई के हित में कुछ होता है की नहीं।



Saturday, October 9, 2010

जांजगीर की जलपरी, अंजनी पटेल

कामनवेल्थ गेम्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी अंजनी पटेल के जज्बे को सलाम। विकलांग होने के बाद भी तैराकी स्पर्धा में जिस ढंग से अंजनी ने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया, उससे हर छत्तीसगढ़ वासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। भले ही अंजनी को कामनवेल्थ गेम्स में ५० और १०० मीटर तैराकी स्पर्धा में कोई पदक ना मिला हो, लेकिन जिस तरह अंजनी ने अपनी प्रतिभा के बल पर दोनों स्तरों में फ़ाइनल में जगह बनाई। उससे परिवार के साथ-साथ प्रदेश का नाम भी रौशन हुआ है। अंजनी ने मिटटी के तालाब से तैराकी का सफर शुरू कर कामनवेल्थ गेम्स के स्विमिंग पूल तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की है।
तैराकी में विदेशी धरती चीन के बीजिंग तक में भारत का झंडा ऊँचा कर चुकी अंजनी पटेल मूलतः जांजगीर चाम्पा जिले के बलौदा की रहने वाली है। यहाँ के छोटे से तालाब में वह रोज तैरा करती थी। विकलांग होने के बाद भी उसके हौसले को देखकर कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाता था। अंजनी, एक ऐसे परिवार से है, जहाँ तैराकी क्षेत्र में आगे बढ़ने में दिक्कत्तें रही हैं। अंजनी के पिता शत्रुहन पटेल, पेशे से बस ड्राईवर है, यही कारण था की उसे शुरूआती दौर में तैराकी में आगे बढ़ने कठिन दौर से गुजरना पड़ा। हालाँकि बाद में उसकी मेहनत और किस्मत ने साथ देना शुरू किया और उसने देखते ही देखते कई पुरस्कार तैराकी में हासिल कर लिए। पिछले साल अंजली पटेल ने चीन के बीजिंग में अपनी तैराकी प्रतिभा का जौहर दिखाया और इसके बाद तो वह मीडिया में अपनी उपलब्धि को लेकर छाई हुई है।
बिलासपुर कलेक्टर ने अंजनी पटेल के हौसले को देखकर उसे प्रशिक्षण दिलाने व पढाई लिखाई की जिम्मेदारी ले ली. इसके बाद अंजनी को सभी सुविधाएँ दी जा रही है। बिलासपुर के संजय तरन पुष्कर में प्रशिक्षक सूरज यादव से वह तैराकी के गुण सीख रही है।
मेरी ओर से अंजनी पटेल को हार्दिक शुभकामनायें। वह नित इसी तरह तैराकी और जीवन पथ पर आगे बढती रहे तथा छत्तीसगढ़ और जिले का नाम रोशन करती रहे।