Saturday, October 9, 2010

जांजगीर की जलपरी, अंजनी पटेल

कामनवेल्थ गेम्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी अंजनी पटेल के जज्बे को सलाम। विकलांग होने के बाद भी तैराकी स्पर्धा में जिस ढंग से अंजनी ने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया, उससे हर छत्तीसगढ़ वासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। भले ही अंजनी को कामनवेल्थ गेम्स में ५० और १०० मीटर तैराकी स्पर्धा में कोई पदक ना मिला हो, लेकिन जिस तरह अंजनी ने अपनी प्रतिभा के बल पर दोनों स्तरों में फ़ाइनल में जगह बनाई। उससे परिवार के साथ-साथ प्रदेश का नाम भी रौशन हुआ है। अंजनी ने मिटटी के तालाब से तैराकी का सफर शुरू कर कामनवेल्थ गेम्स के स्विमिंग पूल तक पहुँचने में कामयाबी हासिल की है।
तैराकी में विदेशी धरती चीन के बीजिंग तक में भारत का झंडा ऊँचा कर चुकी अंजनी पटेल मूलतः जांजगीर चाम्पा जिले के बलौदा की रहने वाली है। यहाँ के छोटे से तालाब में वह रोज तैरा करती थी। विकलांग होने के बाद भी उसके हौसले को देखकर कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाता था। अंजनी, एक ऐसे परिवार से है, जहाँ तैराकी क्षेत्र में आगे बढ़ने में दिक्कत्तें रही हैं। अंजनी के पिता शत्रुहन पटेल, पेशे से बस ड्राईवर है, यही कारण था की उसे शुरूआती दौर में तैराकी में आगे बढ़ने कठिन दौर से गुजरना पड़ा। हालाँकि बाद में उसकी मेहनत और किस्मत ने साथ देना शुरू किया और उसने देखते ही देखते कई पुरस्कार तैराकी में हासिल कर लिए। पिछले साल अंजली पटेल ने चीन के बीजिंग में अपनी तैराकी प्रतिभा का जौहर दिखाया और इसके बाद तो वह मीडिया में अपनी उपलब्धि को लेकर छाई हुई है।
बिलासपुर कलेक्टर ने अंजनी पटेल के हौसले को देखकर उसे प्रशिक्षण दिलाने व पढाई लिखाई की जिम्मेदारी ले ली. इसके बाद अंजनी को सभी सुविधाएँ दी जा रही है। बिलासपुर के संजय तरन पुष्कर में प्रशिक्षक सूरज यादव से वह तैराकी के गुण सीख रही है।
मेरी ओर से अंजनी पटेल को हार्दिक शुभकामनायें। वह नित इसी तरह तैराकी और जीवन पथ पर आगे बढती रहे तथा छत्तीसगढ़ और जिले का नाम रोशन करती रहे।

2 comments:

P.N. Subramanian said...

अंजनी पटेल ने वास्तव में छत्तीसगढ़ियों का सीना चौड़ा कर दिया है. उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं. अच्छा अब बलोदा जांजगीर जिले में चला गया है. वहां भी एक "कोट" है और मौर्य कालीन ईंटों को देखा जा सकता है.

Rahul Singh said...

मेरी भी शुभकामनाएं अंजनी को. ऐसी ही एक तैराक प्रतिभा अकलतरा में भी है. सुब्रह्मनियन जी ने शायद बछौद गढ़ का जिक्र करना चाहा है.