Saturday, September 3, 2011

चौथी पीढ़ी जगा रही शिक्षा की अलख

लक्ष्मणेष्वर मंदिर
पत्थरों की खदान के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मणेश्वर की नगरी खरौद, शिक्षकों की भी खान है। छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात खरौद, जांजगीर-जिले के पामगढ़ क्षेत्र में स्थित है, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षक बनने की परिपाटी चली आ रही है। यहां तीन परिवार तो ऐसे हैं, जिनकी दो-दो पीढ़ियों ने दशकों तक ज्ञान की रोशनी बांटी और अब, आगे की दो पीढ़ी अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चलकर शिक्षा की अलख जगा रही हैं। कहने का मतलब, चौथी पीढ़ी शिक्षा दान के महायज्ञ में लगी हुई हैं। खरौद में एक परिवार ऐसा है, जिनकी तीन पीढ़ियां शिक्षा को समर्पित रहीं हैं और वर्तमान में पिता व दो पुत्र, विद्यार्थियों को जीवन की ककहरा सिखा रहे हैं। यहां अब तक कुल शिक्षकों की संख्या डेढ़ हजार को पार गई है। ऐतिहासिक नगरी खरौद के अधिकांश परिवारों में कोई न कोई शिक्षक हैं या रहे हैं। ऐसे में यहां की भूमि को सरस्वती पुत्रों की जन्मस्थली कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जिले के पामगढ़ विकासखंड अंतर्गत नगर पंचायत खरौद की आबादी 25 हजार से अधिक है। यह नगरी प्राचीन समय से शिक्षा का केन्द्र रही है। वैसे तो यहां लोगों ने उच्च शिक्षा ग्रहण कर हर क्षेत्र में मुकाम हासिल किया है और वे बड़े-बड़े ओहदों मे ंपदस्थ हुए हैं, किन्तु नगर में शिक्षकीय पेशा का एक अलग ही स्थान है। खरौद के डेढ़ हजार से अधिक लोग अब तक शिक्षक बन गए हैं। इनमें से लगभग लगभग सात सौ शिक्षकों का सेवा कार्य पूर्ण हो चुका है तथा कुछ शिक्षक इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।
षिक्षा की अलख जगाता यादव परिवार
खरौद के शुकुलपारा निवासी स्व. झुमुकलाल यादव, स्व. बलदाउ यादव एवं तिवारी पारा निवासी स्व. रामचरण आदित्य के परिवार की चौथी पीढ़ी शिक्षकीय कार्य का निर्वहन कर रही हैं, वहीं तिवारी पारा के ही स्व. तांतीराम साहू के परिवार की तीसरी पीढ़ी शिक्षकीय पेशे से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा यहां 50 से अधिक परिवार के सदस्य, दो पीढ़ी तक शिक्षक के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं। स्व. झुमुकलाल यादव एवं उनके पिता स्व. बृजलाल यादव, शिक्षक थे और उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर, झुमुकलाल यादव के दो पुत्र बद्रीप्रसाद यादव और द्वारिका यादव भी शिक्षा के प्रति समर्पित हैं तथा बद्रीप्रसाद का पुत्र चितरंजन यादव भी शिक्षक हैं, वहीं स्व. बलदाउ यादव तथा उनके पिता स्व. हरलाल यादव शिक्षक थे और अब उनके पुत्र सुरेन्द्र यादव सहित पौत्र संजय यादव शिक्षकीय पेशे से जुड़े हुए हैं।
षिक्षा की अलख जगाता आदित्य परिवार
इसी तरह स्व. रामचरण आदित्य शिक्षक थे और उनके छह में से चार पुत्र रामबगश आदित्य, रामधन आदित्य, रामरतन आदित्य एवं रामप्रताप आदित्य ने शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। रामभरोस के दोनों पुत्र भरतलाल एवं स्व. नंदकिशोर, रामबगश के दो पुत्रों में एक निर्मल कुमार आदित्य, रामरतन की तीनों पुत्रियों स्व. मधु व स्व. आशा शिक्षक रहीं और सुश्री कल्याणी सेवानिवृत्त हुई हैं। रामप्रताप के दो पुत्र नरेन्द्र कुमार आदित्य एवं महेन्द्र आदित्य शिक्षक हैं। इसके अलावा भरतलाल के दो पुत्र प्रकाश नारायण आदित्य एवं प्रमोद कुमार आदित्य तथा स्व. नंदकिशोर आदित्य की दो पुत्रियां विद्यालता, विनयलता तथा एक पुत्र विनायक आदित्य शिक्षक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।
षिक्षा की अलख जगाता साहू परिवार
इसी तरह स्व. तांतीराम साहू के पुत्र विनोद कुमार साहू सहित पौत्र रामशरण साहू एवं पवन साहू, तीसरी पीढ़ी के रूप में सेवा दे रहे हैं। इस परिवार से बाद में जुड़ी, रामशरण की पत्नी भी शिक्षक हैं।
खरौद में शिक्षकों की संख्या व उनकी उपलब्धियों के बारे में क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में चर्चा होती रहती है, क्योंकि प्राचीन समय से ही यह नगरी शिक्षा का केन्द्र रही है और शिक्षा के बेहतर माहौल के कारण यहां के अधिकांश परिवारों में कोई न कोई शिक्षक है। यहां दूर-दूर से लोग आकर पढ़ते थे औ यही कारण है कि वे आज भी विद्या अध्ययन की इस भूमि को प्रणाम किए बगैर नहीं रह पाते। नगर के बुजुर्ग शिक्षक बताते हैं कि खरौद के शुकुलपारा में सन् 1927 से प्राथमिक शाला संचालित है, वहीं मिडिल स्कूल 1935 में शुरू हुआ। इसके अलावा 1962 में हाईस्कूल खुला तथा नगर में ल़क्ष्मणेश्वर महाविद्यालय की स्थापना इसी सत्र में हुई। आसपास गांवों में दशकों में पहले शिक्षा के लिए एक भी विद्यालय नहीं होने से छात्र, यहां आकर अध्ययन करते थे, जो आज विभिन्न पदों पर पदस्थ हैं। दूसरी ओर खरौद के शिक्षक, आसपास क्षेत्र एवं दूसरे जिलों में भी पदस्थ है। अध्ययन-अध्यापन का माहौल तथा शिक्षकों का, समाज में सम्मानजनक स्थान को देखते हुए लोगों का रूझान भी शिक्षकीय पेशा की ओर ज्यादा है, इसमें आने पीढ़ी भी अपनी पूरी भूमिका निभा रही हैं, यह बात खरौद के लिए बड़ी उपलब्धि है।
इतना तो सभी जानते हैं कि शिक्षा के बिना, सशक्त समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है। शिक्षा की नींव को मजबूत कर ही, हम अपनी भावी पीढ़ी को संस्कारित तथा उन्नति की शिखर पर देख सकते हैं। आज जो विकास हम देख रहे हैं, निश्चित ही वह शिक्षा के प्रसार का ही प्रतिफल है। शिक्षा के विकेन्द्रीकरण के कारण जहां हर वर्ग तक शिक्षा पहुंची है, वहीं इससे लोगों में जागरूकता भी है। शिक्षा, वैसे हर तरह से समाज को प्रभावित करती है और व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी बदलने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि हमेशा, बेहतर शिक्षा हर जगह वकालत होती है। ऐसे में खरौद के शिक्षकों के योगदान एवं भावी पीढ़ी के इस परिपाटी में जुड़ने को, एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर माना जा सकता है। निश्चित ही, यह सरस्वती पुत्रों की भूमि धन्य है, जहां एक ऐसी परंपरा की होड़ है, जिससे समाज को एक नई दिशा मिलती है।

1 comment:

Rahul Singh said...

इसकी पृष्‍ठभूमि में खरौद के नागरिकों के साथ देवनारायण शुक्‍ल जी और रामनारायण शुक्‍ल जी की स्‍तुत्‍य भूमिका रही है.