Thursday, December 20, 2012

दूधमुंहे बच्चों की अनोखी ‘पाठशाला’

 कार्यस्थल पर बच्चों को पढ़ाती निरक्षर ‘सरजूबाई’
बच्चों को शिक्षा देने के लिए देश भर में लाखों पाठशाला संचालित कराई जा रही हैं, लेकिन दूधमुंहे बच्चों की एक अनोखी ‘पाठशाला’ भी चल रही है, जहां बच्चों को संस्कारित शिक्षा देने के साथ ही, देशभक्ति गीतों से भी रूबरू कराया जाता है। जी हां, जिले के नवागढ़ इलाके के गोधना गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य के दौरान, ऐसा ही नजारा हर दिन देखने को मिलता है, जब दूधमुंहे बच्चों की ‘पाठशाला’ लगती है और उन्हें पढ़ाने पहुंचती हैं, अनपढ़ ‘सरजू बाई’। 60 साल की सरजू बाई, भले ही अशिक्षित हांे, लेकिन खुद के प्रयास से उन्होंने जो तामिल हासिल की है, उससे बच्चों का भविष्य जरूर निखर रहा है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना यानी मनरेगा के तहत होने वाले कार्य के दौरान, मजदूरों के 5 से अधिक बच्चों के लालन-पालन के लिए एक महिला को काम पर रखने का प्रावधान है। इसी के तहत पिछले पांच साल से ग्राम पंचायत गोधना में 60 साल की ‘सरजू बाई’ काम कर रही है। वैसे तो उनकी जिम्मेदारी कार्य के समय बच्चों की देखभाल की है, लेकिन वह अपने ज्ञान का प्रसार करने की चाहत रखते हुए बच्चों की पढ़ाई भी कराती है, जिस पर मजदूर भी गदगद नजर आते हैं। एक तो बच्चों की पढ़ाई हो जाती है, वहीं उनका मनोरंजन भी हो जाता है। लिहाजा, मजदूरों को काम के दौरान कोई समस्या नहीं आती।
सरजू बाई कहती हैं कि वह छह महीने ही स्कूल गई थी, परंतु बाद में किसी कारणवश पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जिसका उन्हें मलाल है। पढ़ाई की इच्छा शुरू से रही है, जिसके कारण वह गिनती, पहाड़ा तथा देशभक्ति गीतों को पढ़ती रहती थी। दिलचस्प बात यह है कि वह एक कक्षा भी नहीं पढ़ी है, लेकिन उन्हें ‘अक्षर’ के साथ ‘अंकों’ की भी पहचान है, जिसके बाद वह आगे बढ़ती गईं और आज वह ढलती उम्र में, कहीं न कहीं शिक्षा की अलख जगाने वाली ‘खान’ बन गई हैं। वह कहती हैं, जब भी मन करता है, ‘देशभक्ति गीत’ गुनगुनाती रहती हैं। इस तरह एक के बाद एक, सब याद हो गए। निश्चित ही, सरजू बाई ने एक मिसाल कायम की है, क्योंकि अच्छी शिक्षा के बाद भी कई लोगों की पढ़ाई से मोह भंग हो जाता है, वहीं अनपढ़ होने के बाद भी पढ़ाई के प्रति अपनी जिज्ञासा बनाई हुई है, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम ही नजर आती है। वह यह भी कहती है, दूधमुंहे बच्चों की देखरेख के साथ, स्कूल जाने से पहले कुछ पढ़ाई हो जाए तो, इसके बाद बच्चों को ही भविष्य में लाभ होगा।
वह राष्ट्रगान गाती हैं और बच्चे उसे दोहराते हैं। यही हाल, गिनती व पहाड़ा का भी है। कई घंटों तक चलने वाले कार्य के दौरान यही सिलसिला चलता रहता है। ‘झण्डा ऊंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ गाती हैं तो बच्चे भी पूरे उत्साह से गाते नजर आते हैं। ‘सरजू बाई’ अनेक गाना गाकर भी सुनाती हैं, जिससे हर कोई भाव-विभोर हुए बिना नहीं रहता।
इतना ही नहीं, बच्चों का कई मनमोहक गीतों से मनोरंजन कराती हैं। ‘हाथी देखो बड़ा जानवर, लंबी सूंड हिलाती है’, ‘हरे रंग का है यह तोता’, ‘रेल चली रे रेल, बड़े मजे का खेल’ जैसे गीतों को गाती हैं और फिर बच्चे भी मग्न नजर आते हैं। मजदरू मां-बाप की भी उन्हें इस दौरान याद नहीं रहती है। बस, सरजू बाई की पढ़ाई व सीख की बातों में ही खोए हुए नजर आते हैं।
सरजू बाई, रानी लक्ष्मी बाई द्वारा फिरंगियों के खिलाफ की गई लड़ाई को भी गीतों के माध्यम से बखान करती हैं और कहती हैं, ‘दूर हटो फिरंगियों, आती है झांसी की रानी’।
मनरेगा के कार्य स्थल पर दूधमुंहे बच्चों को संभालने के साथ उनकी पढ़ाई कराने की बात से, मजदूर भी खुश नजर आते हैं और उनकी तारीफ किए बगैर नहीं रह पाते। मजदूर जोहन कश्यप कहता है कि बच्चों को कोई परेशानी नहीं होती, उनका भी काम अच्छे से होता है।
ऐसा ही कुछ कहना है कि गोधना के रोजगार सहायक सुरेश कुर्रें का भी। छोटे-छोटे बच्चों को अच्छे से संभालती है। बढ़िया काम करती है, बच्चों को सीखाती-पढ़ाती है।
मनरेगा योजना के तहत जो व्यवस्था मजदूरों के बच्चों की देखभाल के लिए की गई है, इसे लेकर मनरेगा के जिला कार्यक्रम अधिकारी योगेश्वर दीवान का कहना है कि कम पढ़े-लिखे होने के बाद भी सरजू बाई का प्रयास, निःसंदेह सराहनीय है। कार्य स्थल पर बच्चों को अच्छी शिक्षा देती है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम ही होगी।
मजदरू परिवार के दूधमुंहे बच्चों को निश्चित ही ऐसी तालिम कम जगह ही मिलती होंगी। ऐसे में ‘सरजू बाई’ द्वारा जिस तरह बच्चों को शिक्षा दान दिया जा रहा है, वह अनोखी मिसाल ही साबित हो रही है, क्योंकि दूधमुंहे बच्चों की ऐसी अनोखी ‘पाठशाला’, शायद ही किसी ने देखी होगी और न सुनी होगी। इस तरह शिक्षा की नींव को मजबूत करने वाली अनपढ़ ‘सरजू बाई’ के योगदान को, भुलाया नहीं जा सकता।

1 comment:

jayant sahu_जयंत said...

सच कहा आपने अनपढ़ सरजूबाई के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, उनकी पाठशाला से भले ही कोई आईएस आईपीएस न निकले पर हर बच्चा एक अच्छा इंसान जरूर बनेंगे। सरजूबाई के जस्बे को सलाम जो अशिक्षित होते हुए भी देश के कर्णधारों को ज्ञान बाट रही हैं।