आज युवाओं में जिस प्रकार से नैतिक पतन हो रहा है, इसके लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा पाठयक्रम को शामिल किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही शिक्षकों में भी शैक्षिणिक कर्तव्य बोध की भावना जागृत करने की जरूरत है जिससे शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार हो सके। यह कहना है पामगढ विकासखण्ड के शुकुल पारा खरौद निवासी सेवानिवृत्त प्रधानपाठक मोहन लाल यादव का।
सतत अध्ययनशील एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी श्री यादव सेवानिवृत्त के बाद भी स्कूल में नि: शुक्ल शिक्षा प्रदान कर छात्र - छात्राओं के भविष्य को रौशन करने जुटे है। एम.ए.तक शिक्षा प्राप्त 64 वर्षीय श्री यादव पिछले वर्ष 28 फरवरी 2006 को खरौद स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला के मिडिल विभाग से प्रधानपाठक के पद से सेवानिवृत्त हुए तथा उसी समय से ही वहां नि:शुल्क सेवाएं शुरू कर दी।वर्तमान में श्री यादव कन्या पूर्व माध्यमिक शाला में नि:शुक्ल शिक्षा प्रदान कर छात्र -छात्राओं को विद्या दान कर रहे हैं। उन्होंने नगर सहित क्षेत्र के छात्र -छात्राओं को साहित्य की दिशा में लाभान्वित करने अपनी पुत्री स्व.मुजूलता की स्मृति में एक वाचनालय सन् 1997 में प्रारंभ किया,जहां साहित्य के ज्ञान पिपासु आज अपनी प्यास बुझाते है। श्री यादव की नि: शुल्क विद्या दान की चर्चा नगर सहित क्षेत्र भर में है। लोगों में उनकी पहचान एक कर्मठ तथा मृदुभाषी शिक्षक के रूप से रहा है।
वे कहते है कि विद्या दान पुण्य का कार्य है और वे जब तक जीवित रहेंगे,तब तक उनका यह संकल्प जारी रहेगा। अब तक किसी भी सम्मान या पुरस्कार से वंचित श्री यादव का कहना है कि वे कर्म पर विश्वास रखते है और इससे समाज में परिवर्तन व आसपास के माहौल में सुधार ही बडा पुरस्कार है। उनके लिये सबसे बडा पुरस्कार छात्र -छात्राओं द्वारा प्राप्त होने वाला सम्मान है,जिसके सामने सभी पुरस्कार का महत्व शून्य है।
Saturday, June 21, 2008
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3 comments:
राज कुमार जी बहुत ही उम्दा लेख क्योंकि आपके कलम टेल गहरी पैठ है. आशा है लिखते रहेंगे.
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उल्टा तीर
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
amit ji
aapka mauje sagar ki kavita achchhi hai
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