भले ही वह अनपढ़ है और उसे पढ़ाई की गूढ़ बातें नहीं पता, लेकिन वह शिक्षा की अहमियत को समझता है। कहते हैं शिक्षा मनुष्य को नए विचार से ओत-प्रोत कर देती है। वह भले ही अशिक्षित है, किंतु शिक्षा से मानव में कितना विकास हुआ है, इससे वह अनजान नहीं है। यही कारन है की उसने गरीबी परिस्थिति के बावजूद शिक्षा के विकास के लिए अपनी तीन एकड़ जमीं में से एक एकड़ जमीन को स्कूल भवन बनाने के लिए दान कर दिया।
यह शिक्षा प्रेम की कोई कहानी नहीं, बल्कि राजनांदगांव जिले के दूर्रेतोला निवासी श्री प्रेम लाल जी द्वारा किए गए अभिनव प्रयास तथा शिक्षा प्रेम की सत्य बात है। इस बात की जिन्हें भी जानकारी होगी , वे प्रेम लाल जी द्वारा किए गए प्रयास मुक्त कंठ से प्रसंशा जरूर करेंगे।
इस आशय की जानकारी हरिभूमि अखबार के ९ अगस्त के अंक में लेखक योगेश अग्रवाल की लेख मेरी राय से मिली। इस लेख में प्रेम लाल जी द्वारा शिक्षा के प्रसार गाँव में करने संबधी पहल करने की बात पता चला। उनके प्रयास की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। क्योंकि उनहोंने जो कार्य किया है, वह हर किसी की बात नहीं है। लेखक श्री अग्रवाल ने लेख में बताया है की दुर्रेतोला गाँव में स्कूल भवन निर्माण के लिए सरकारी जमीन नहीं थी। इस बात की जानकारी जब प्रेम लाल जी को मिली, तो उनहोंने अपने तीन पुत्रों के लिए रखी तीन एकड़ जमीन में से एक एकड़ जमीन को दान करने का मन बना लिया। उनकी सकारात्मक सोच है की गाँव में शिक्षा से कोई भी व्यक्ति या बच्चा वंचित न रहे। प्रेम लाल जी अपने तीन बेटों के हिस्से की जमीन, दान में दे दी। उनहोंने केवल भावी पीढी की शिक्षा की चिंता की। उनकी यह सोच, कई मायनों में उन्हें अन्य लोंगों से अलग करता है, क्योंकि कई लोग दान तो करते हैं, लेकिन इसका समाज को कितना लाभ मिलेगा। इसके बारे में कोई विचार नहीं करते। इस लिहाज से प्रेम लाल जी का शिक्षा प्रेम समाज के लिए एक मिसाल है। जो काम शासन को करना चाहिए, वह काम एक ऐसा ग्रामीण कर रहा है, जो ख़ुद नहीं पढ़ा है, लेकिन आने वाली पीढी को अशिक्षित देखना नहीं चाहता।
राजनांदगांव जिले का दुर्रितोला गाँव की आबादी महज दो सौ है। आजादी के ६२ बसंत बाद भी इस गाँव में शिक्षा की ज्योति की रौशनी यहाँ नहीं पहुँच सकी है। सरकार भले ही शिक्षा विकास के लाख दावे करे, लेकिन दुर्रितोला जैसे गाँव की संख्या प्रदेश में बहुत हैं। जहाँ शिक्षा का जितना विकास होना चाहिए, नहीं हो सकी है। प्रेम लाल जी जैसे लोग ही हैं, जो समाज में ऐसा सराहनीय काम कर जाते हैं, जो समाज व देश के किसी मिसाल से कम नहीं है।
सरकार द्वारा शिक्षा प्रोत्सहन की दिशा में ढेरों कार्य करती है। साथ ही बेहतर कार्य के प्रोत्शाहन स्वरुप पुरस्कार भी दिया जाता है। ऐसे में धुर नक्सली प्रभावित इलाके के गाँव के रहवासी होने के बाद प्रेम लाल जी ने जो हिम्मत व दिलेरी दिखाई है। इसे किसी भी सूरत में सरकार तथा उनके नुमैन्दे को कम तर नहीं आंकना चाहिए। सरकार के पुरस्कारों के लिए जिस ढंग से जोड़-तोड़ होती है, इसे देखकर नहीं लगता की प्रेम लाल जी जैसे कर्म शील व्यक्ति को कहीं स्थान मिल सकता है। हालाँकि प्रेम लाल जी शिक्षा के विकास की दिशा में जो उल्लेखनीय कार्य किए हैं, इससे उन्होंने हर उस व्यक्ति के दिल में जगह बना ली है, जो शिक्षा की अहमियत को समझता है और जनता है। इस तरह प्रेम लाल जी के प्रयास भी सराहनीय और समाज को नई दिशा देने वाला है। निश्चित ही नई पीढी को प्रेम लाल जी का यह कदम यद् रहेगा, क्योंकि उनहोंने जो शिक्षा की अलख जगाने के लिए कार्य किए हैं।
अंत में श्री प्रेम लाल जी के शिक्षा प्रेम को प्रणाम। आशा है उनका अपने गाँव में शिक्षा विकास का सपना जरुर साकार होगा और दूर्रितोला गाँव के नव पीढी शिक्षा की मुख्या धारा से जुड़ जायेंगे। लेखक श्री अग्रवाल जी का भी हम आभारी हैं, जिन्होंने समाज को दिशा देने वाला आलेख को लिखने में रुचि दिखाई। तब जाकर हमें प्रेम लाल जी सराहनीय कार्यों की जानकारी मिली।
आशा है समाज में कुछ ऐसे सद्कार्य भविष्य में भी होते रहे। यही कामना है, जिससे समाज में मानवता कायम रह सके।
...पिता के सपनों को बेटियों ने किया पूरा
जांजगीर चाम्पा जिले के पोडी कला गाँव में संचालित हायर स्कूल के भवन निर्माण के लिए साहू परिवार के एक व्यक्ति ने १ लाख रूपये दान देने की बात कही थी। इसके बाद उस व्यक्ति की मौत हो गई। इस बात की जानकारी जब उस व्यक्ति के ३ बेटियों को लगी तो वे दान की राशिः१ रूपये देने की पहल की। सरकारी स्कूल भवन निर्माण के लिए दान देने की इनकी भी मंशा शिक्षा विकास से है। इस बात की तारीफ तत्कालीन जिला पंचायत के सीईओ ओ पी चौधरी ने भी की थी। संस्था के प्रभारी प्राचार्य श्री स्वर्णकार ने बताया की लंबे समय बाद भी शासन से भवन के राशिः स्वीकृत नहीं हो पाई थी। इस दौरान श्री साहू ने भवन निर्माण कराने १ लाख रूपये देने की बात कही थी। उनके देहांत होने के बाद पिता के सपनों को उनकी बेटियों पूरी करने की ठान ली और एक कार्यक्रम कर इसका चेक उन्होंने संस्था को प्रदान किया। श्री स्वर्णकार ने साहू परिवार के इस प्रयास की सराहना की। क्षेत्र में भी इसकी जानकारी जिसे भी मिला, उन्होंने पिता के सपनों को पूरा करने वाली बेटियों के सराहनीय कदम की प्रशंसा की।
मेरी ओर से भी स्व साहू को श्रधांजलि, जिन्होंने समाज हित में उल्लेखनीय योगदान दिया और उन बेटियों की सकारात्मक सोच को नमन...
बेटियों को घर का बोझ समझने वालों को भगवान् सदबुध्धि दे। भगवान् हर घर में ऐसी बेटियाँ पैदा करें, जो समाज को दिशा देने में अहम् भूमिका निभा रही हैं। कहते हैं, जब एक बेटी शिक्षित होती हैं तो पूरा परिवार ही नहीं, वरन समाज शिक्षित होता है।
Saturday, August 22, 2009
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