Sunday, February 2, 2014

जांजगीर-नैला के ‘दधिचि’ सूरजमल जैन

समाजसेवी स्व. श्री सूरजमल जैन जी
जांजगीर-नैला ( छत्तीसगढ़ ) के जैन परिवार ने देहदान का जो मिसाल पेश की है, वह समाज के हर वर्ग के लिए अनुकरणीय है। 93 साल की उम्र में समाजसेवी सूरजमल जैन का देहांत हुआ तो उनके पार्थिव देह को मेडिकल कॉलेज बिलासपुर को सौंप दिया गया। इस तरह उन्होंने पुरातन ‘दधिचि’ परंपरा को पुरर्जीवित किया है। उनके देह ‘दान’ की तारीफ करते हुए लोगों ने समाजसेवी सूरजमल जैन को जांजगीर-नैला के ‘दधिचि’ की संज्ञा दी है।
खास बात यह है कि सूरजमल जैन के देहांत के बाद, उनसे प्रेरणा लेकर उनके बेटे महेन्द्र जैन व बहु शोभा जैन ने भी अपना देहदान किया है। इस पुण्य कार्य से न केवल उनका परिवार गौरव महसूस कर रहा है, बल्कि समाज के लोग भी इस सद्कार्य से अभिभूत हैं।
देहदान का संकल्प लेने वाले महेन्द्र जैन और श्रीमती शोभा जैन और साथ में परिजन सुषील जैन ( पीछे )
30 जनवरी यानी राष्ट्रपिता की पुण्यतिथि के दिन समाजसेवी सूरजमल जैन ने भी देह त्यागा। इसके बाद उनकी इच्छा के अनुरूप परिवार के लोगों ने मेडिकल कॉलेज बिलासपुर प्रबंधन को जानकारी दी। दरअसल, 3 साल पहले समाजसेवी सूरजमल जैन ने देहदान करने की मंषा परिवार वालों के समक्ष जाहिर की थी। इस पर सभी ने खुषी जाहिर करते हुए उनके इस पुनित कार्य की प्रषंसा की थी। इसके बाद देहदान करने का आवेदन दिया गया था। जिसके तहत देहावसान के बाद मेडिकल कॉलेज को उनका शरीर सौंप दिया गया।
इधर नैला में उनके निवास पर समाजसेवी सूरजमल जैन को श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा। न केवल सूरजमल जैन का परिवार, बल्कि जैन समाज के लोग गदगद हैं कि उनके समाज के किसी व्यक्ति ने ऐसा सद्कार्य किया है, जिससे दूसरे लोग भी प्रेरणा लेंगे। उनकी मानें तो छग ही नहीं, बल्कि देष में जैन समाज का यह पहला ऐसा अवसर होगा, जब समाज के किसी व्यक्ति ने अपने शरीर दान किया हो। फिलहाल, सूरजमल जैन के देहदान की सोच को महापुरूष ‘दधिचि’ से जोड़ा जा रहा है और उन्हें, जांजगीर-नैला के ‘दधिचि’ भी कहा जा रहा है।
गौरतलब है कि मेडिकल कालेज बिलासपुर में छात्रों को पढ़ने के लिए ‘डमी’ शरीर दिया जाता है, जिससे उनकी पढ़ाई ठोस तरीके से नहीं हो पाती। मेडिकल छात्रों की पढ़ाई अगर सही न हुई तो डॉक्टर, कैसे लोगों का सही इलाज कर पाएंगे। इसी तकलीफ को ध्यान में रखकर जांजगीर-नैला के एक ही परिवार के तीन लोगों ने देहदान का संकल्प लिया है। निष्चित ही यह निर्णय सभी समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायी कदम है।
सूरजमल के सद्कार्य से सभी लोग अभिभूत हैं और वे उनके कार्य की तारीफ करते हुए समाज के हर वर्ग के लोगों को पुरानी रूढ़िवादिता को तोड़कर शरीर दान करने आगे आएं, ताकि मेडिकल छात्रों को पढ़ाई और शोध में हर तरह से सहयोग मिले। इस एक पहल से आने वाले दिनों में एक सकारात्मक परिणाम आने के आसार भी जाग्रत हो गए हैं।
हमारे समाज में ‘देहदान’ की पुरानी परम्परा है। ऋषि ‘दधिचि’ ने अपना देह देकर देवताओं को उपकृत किया था, लेकिन आज के समय में साइंस के लिए जो कार्य जैन परिवार ने किया है, उसे हर किसी के द्वारा सराहा जा रहा है। इस मिसाल के बाद, आधुनिक समाज को इस त्याग से निष्चित ही नई प्रेरणा मिलेगी।
...अंत में ऐसे ‘व्यक्तित्व’ को सादर प्रणाम...

2 comments:

jindaginama said...
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jindaginama said...

achchhi pahal, samaaj ke liye.