Thursday, June 5, 2014

मषरूम ने तोड़ा ‘गरीबी’ से नाता

युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ी समस्या बन गया है, लेकिन जिन युवाओं में जज्बा है और सीखने की ललक है, उनकी राह आसान होते देर नहीं लगती। मषरूम से रोजगार मिलने के कारण गरीबी से युवाओं का नाता भी टूटा है। ऐसी मिसाल कायम किया है, जांजगीर-चांपा जिले के लक्ष्मीनारायण मन्नेवार और दीनदयाल यादव ने। दरअसल, मषरूम इनके आय का मुख्य जरिया बन गया है, जिससे इनकी गरीबी परिस्थिति में भी बदलाव आने लगा है।
ये हैं, चांपा इलाके के बालपुर गांव के लक्ष्मीनारायण मन्नेवार। इन्होंने शारीरिक विकलांगता को मात देते हुए मषरूम उत्पादन में अपनी अलग ही पहचान बनाई है और हर साल हजारों रूपये मषरूम उत्पादन करके आय अर्जित कर रहे हैं। ऐसे ही बहेराडीह गांव के दीनदयाल यादव ने भी मषरूम को अपनी आय का प्रमुख जरिया बना रखा है। कम खर्च में आय का बड़ा साधन साबित हो रहा है, मषरूम उत्पादन। साथ ही मेहनत भी कम है, एक बार स्पॉन लगाने का काम हुआ, उसके बाद पानी से हल्की-हल्की सिंचाई ही करनी पड़ती है।
साल में कुछ महीनों को छोड़ दें तो मषरूम का उत्पादन काफी अधिक होता है और मषरूम में पोषक तत्वों होने के कारण इसके खरीददारों की कमी भी नहीं रहती। बषर्ते, मषरूम उत्पादकों को बिक्री के लिए गांव से शहर की ओर रूख करना पड़ता है। देखा जाए तो संसाधन के लिहाज से कम खर्च में मषरूम उत्पादन में हजारों रूपये की आमदनी होती है। यही वजह है कि प्रषिक्षण के माध्यम से और भी युवा, मषरूम उत्पादन से धीरे-धीरे जुड़ रहे हैं। मषरूम तैयार करने वाले कृष्णकुमार और दीनदयाल, जिले के अनेक जगहों में जाकर प्रषिक्षण दे चुके हैं। जिससे लोगों को रूझान इस नगदी खेती को बढ़ता ही जा रहा है।
इतना जरूर है कि मषरूम की खेती करने वाले लक्ष्मीनारायण मन्नेवार को प्रचार-प्रसार की कमी खलती है, लेकिन मषरूम का जितना उत्पादन वे कर रहे हैं, उसकी बिक्री नजदीक के शहरों में होने से उनमें संतोष भी नजर आता है। दूसरी मषरूम का रोजगार और अधिक नहीं बढ़ने का उन्हें अफसोस भी है।
मषरूम की खेती करने वाले किसान दीनदयाल यादव को बस, एक ही कमी खलती है और वह है, मषरूम बनाने वाले ‘स्पॉन’ ( मषरूम बीज ) की। मषरूम के लिए स्पॉन, किसानों को रायपुर या बिलासपुर से लाना पड़ता है, जिसके चलते मषरूम उत्पादन और अधिक नहीं हो पा रहा है। इसके कारण खर्च में भी कुछ वृद्धि हो जाती है। वे कहते हैं कि मषरूम के व्यवसाय को बेहतर तरीके से करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र और चांपा की एक संस्था द्वारा ‘स्पॉन’ बनाने की दिषा में कार्य करने मदद करने का भरोसा दिलाया है।
दूसरी ओर कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के अपने दावे हैं। उनकी मानें तो मषरूम उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए केन्द्र में बुलाकर और किसानों के गांवों में जाकर प्रषिक्षण दिया जाता है। साथ ही स्पॉन ( मषरूम बीज ) बनाने के लिए लैब में जानकारी दी जाती है।
मषरूम उत्पाद कर रहे किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर ही आय का बड़ा जरिया हासिल किया है, लेकिन स्पॉन की व्यवस्था, जिले में नहीं होने से मषरूम व्यवसाय थम सा गया है। ऐसे में प्रषासन को चाहिए कि किसानों को प्रोत्साहित करे, ताकि जिले के और भी किसान और युवा, मषरूम से रोजगार पाकर उन्नत और खुषहाल बन सके।

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