Sunday, June 15, 2014

तीसरी पास ‘कोमल’ ने रच दिया इतिहास

जिले के पामगढ विधानसभा क्षेत्र के बेल्हा गांव के कोमल प्रसाद कुर्मी ने हिन्दी में रचित श्रीमद् भागवत कथा को ‘छत्तीसगढी’ में अनुवाद करके छत्तीसगढी साहित्य के क्षेत्र में एक नये अध्याय की शुरूआत की है। निष्चित ही छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिहाज से उनके प्रयास की सर्वत्र सराहना हो रही है, लेकिन आर्थिक अभाव के चलते कोमल प्रसाद द्वारा लिखित ‘छत्तीसगढी़ श्रीमद् भागवत कथा’ पुस्तक का प्रकाषन बेहतर तरीके से नहीं हो पाया है। बस, इसी बात का मलाल कोमल प्रसाद को अब भी है।
महज तीसरी कक्षा तक पढे़ 71 वर्षीय कोमल प्रसाद कुर्मी ने आर्थिक विपत्रता के बाद भी, न केवल श्रीमद् भागवत कथा को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया है, वरन उन्होंने इसका 588 पृष्ठ के ‘पुस्तकाकार’ प्रकाशन भी कराया है। हालांकि, धन के अभाव में छपाई में कई खामी है, मगर इससे उनके प्रयास को कम करके नहीं आंका जा सकता। वे बताते हैं कि श्रीमद् भागवत में ऋषि सुखदेवमुनि, राजा परिक्षित को लगातार 168 घंटे तक कथा का श्रवण कराते हैं, जिसका पूर्ण वर्णन उनकी अनुवादित छत्तीसगढ़ी पुस्तक में किया गया है।
हिन्दी की श्रीमद् भागवत कथा की तरह ही छत्तीसगढी में भी अनुवादित श्रीमद् भागवत कथा में 12 स्कंध एवं 339 अध्याय है। कोमल प्रसाद ने छत्तीसगढी श्रीमद भागवत कथा के अलावा महाभारत, रामायण, ‘शिवरीनारायण बाजार से’ ( शिवरीनारायण के संदर्भ में ), सच्चाई की दुनिया, गांधीजी की पूजा आदि भी छत्तीसगढी में लिखी है, जो अर्थाभाव के चलते अप्रकाशित है।
उन्होंने छत्तीसगढी में श्रीमद् भागवत के अनुवाद के लिए हिन्दी श्रीमद भागवत तथा सुखसागर से शब्दों का चयन किया है। अहम बात यह भी है कि वे प्रतिदिन सुबह-शाम भागवत और रामायण का वाचन करते हैं, जिससे उन्हें आत्मीय शांति मिलती है। इस दौरान कथा श्रवण के लिए गांव के कुछ लोग भी पहुंचते हैं और वे भी कोमल प्रसाद की तारीफ किए बगैर नहीं थकते।
यहां यह बताना जरूरी है कि आज से 19 वर्ष पूर्व सन् 1995 के दौरान कॉपी में सरसरी तौर पर ‘छत्तीसगढ़ी श्रीमद् भागवत कथा’ लिखकर शिवरीनारायण स्थित पूजा प्रिटिंग प्रेस में इसका प्रकाशन प्रारंभ कराने दिया और आर्थिक अभाव के चलते कई वर्षों बाद पुस्तक का प्रकाशन पूर्ण हो सका है। प्रकाशन के आरंभ से लेकर, इसके अंतिम रूप से प्रकाशन होने के बीच की अवधि में कोमल प्रसाद को काफी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा।
लेखक कोमल प्रसाद कुर्मी को अपनी पुस्तक प्रकाषन के लिए रोजाना 5 किमी दूरी तक कर षिवरीनारायण जाना पड़ता था, जहां वे पांडुलिपि को कम्प्यूटर में टाइप कराते। 2002 में यह कार्य पूर्ण हुआ, लेकिन टाइपिंग में हुई गलतियों को सुधारने में दो-तीन साल और बीत गए।
इस छत्तीसगढ़ी श्रीमद् भागवत कथा के प्रकाशन में करीब 9 वर्ष लग गये। हालांकि, उन्होंने कभी इससे हार नहीं मानी और मन में ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो, वे पुस्तक का प्रकाशन अवश्य ही करायेंगे। उनके इसी साहस का ही परिणाम है कि आज छत्तीसगढ़ी में श्रीमद भागवत कथा का प्रकाषन ‘पुस्तक’ रूप में संभव हो सका है। यह और बात है कि धन के अभाव के कारण न तो छपाई अच्छी हो पाई है और न ही, वे इसकी ज्यादा प्रति प्रकाशित करा पाये हैं। कोमल प्रसाद को इस बात का मलाल भी है, मगर वे अपनी गरीबी को अपनी किस्मत समझ, मन मसोसकर रह जाते हैं।
कोमल प्रसाद, छत्तीसगढी में विभिन्न धार्मिक रचनाओं के लिखने की प्रेरणा के पीछे भगवान की भक्ति को प्रमुख कारण मानते हैं। अपनी पुस्तक का बेहतर प्रकाषन को लेकर अब भी विष्वास कायम है और इसी कामना के साथ उनमें एक आस अब भी बाकी है। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी भागवत की पुस्तक छप जाती तो वे भी ‘नाम’ कमा लेते।
कोमल प्रसाद के पूरे परिवार में पत्नी, 4 पुत्रों एवं पुत्रवधूओं सहित 21 सदस्य हैं, जिसके कारण उनके समक्ष आर्थिक संकट हमेशा बांहें फैलाये खड़ा रहता है। ऐसा नहीं है कि परिवार के लोगों का सहयोग नहीं रहता, लेकिन कोमल प्रसाद का परिवार, आर्थिक तौर पर इतना संबल नहीं है कि कोमल प्रसाद की तमन्ना पूरी कर सके।
इस कठिन समय में भी परिवार के सभी सदस्यों का पूर्ण सहयोग, पुस्तक के प्रकाशन में प्राप्त होता रहा है। कोमल प्रसाद के बेटे हरिषंकर का कहना है कि वे लोग बस इतना चाहते हैं कि कैसे भी करके उनके पिता द्वारा छत्तीसगढ़ी में अनुवादित पुस्तक का प्रकाषन हो जाए। शासन से उन्हें मदद की आस भी है।
जब हमने कोमल प्रसाद के हालात की जानकारी पामगढ़ विधायक अंबेष जांगड़े के समक्ष रखी तो उन्होंने कोमल प्रसाद की सराहना करते हुए कहा कि उनकी ओर से जो भी मदद की जरूरत होगी, वे करेंगे। यदि शासन स्तर की बात होगी तो वे पुस्तक के अच्छा प्रकाषन के लिए मुख्यमंत्री तक भी बात पहुंचाएंगे।
कोमल प्रसाद कुर्मी ने 19 बरसों की अथक मेहनत एवं लगन से छत्तीसगढी साहित्य और संस्कृति में एक नवीन अध्याय जोडने की शुरूआत की है। अब, राज्य शासन के संस्कृति मंत्रालय द्वारा कोमल प्रसाद के प्रोत्साहन हेतु समुचित पहल का इंतजार है, ताकि पुस्तक का बेहतर प्रकाषन की जो इच्छा, कोमल प्रसाद की है, वह पूरी हो सके।

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