Thursday, July 3, 2014

जीवन भर ‘विद्यादान’ का महासंकल्प

जीवन में कर गुजरने की तमन्ना तो सभी की होती है, लेकिन बहुत कम होते हैं, जो समाज उत्थान की दिषा में अपना योगदान दे पाते हैं। जिले के खरौद में ऐसे ही व्यक्तित्व हैं, सेवानिवृत्त षिक्षक एमएल यादव, जिन्होंने जीवन भर ‘विद्यादान’ का महासंकल्प लिया है और अपने रिटायरमेंट के 9 साल बाद भी सरकारी स्कूल में निःषुल्क पढ़ा रहे हैं। षिक्षा के प्रति उनका इसकदर लगाव, निःसंदेह समाज को संदेष देता है और बताता है कि जीवन में षिक्षा क्यों जरूरी है और उसका कितना महत्व है।
सतत अध्ययनशील एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी श्री यादव सेवानिवृत्त के बाद भी स्कूल में निःषुल्क शिक्षा प्रदान कर छात्र-छात्राओं के भविष्य को रौशन करने जुटे हैं। एमए राजनीति और इतिहास में शिक्षा प्राप्त 72 वर्षीय श्री यादव, 28 फरवरी 2005 को खरौद स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला के मिडिल विभाग से प्रधानपाठक के पद से सेवानिवृत्त हुए तथा उसी समय से ही वहां निःशुल्क सेवाएं शुरू कर दी।
श्री यादव ने ‘षिक्षादान’ को महासंकल्प के तौर पर ग्रहण किया है और वर्तमान में श्री यादव, कन्या पूर्व माध्यमिक शाला में निःषुल्क शिक्षा प्रदान कर छात्र-छात्राओं को विद्यादान कर रहे हैं। इस तरह सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका निरंतर 9 बरस से स्कूल से लगाम कायम है। श्री यादव की निःशुल्क विद्यादान की चर्चा नगर सहित क्षेत्र भर में है। लोगों में उनकी पहचान एक कर्मठ तथा मृदुभाषी शिक्षक के रूप में है। उन्होंने 2005 में रिटायरमेंट के बाद सबसे पहले सुकुलपारा के मिडिल स्कूल में निःषुल्क पढ़ाना शुरू किया, जहां से वे खुद रिटायर हुए थे। उस दौरान षिक्षकों की भी कमी थी। वे बताते हैं कि रिटायमेंट के बाद उनकी मंषा थी कि वे किसी न किसी विद्यालय में पढ़ाएंगे।
 रिटायर षिक्षक एमएल यादव का स्वास्थ्य, उम्र के लिहाज से खराब होते जा रहा है। फिर भी वे स्कूल में निःषुल्क पढ़ाने से पीछे नहीं हट रहे हैं। अभी वे कन्या मिडिल स्कूल में पढ़ा रहे हैं, जहां वे 2007 से पढ़ा रहे हैं। स्वास्थ्यगत बाधा के बाद भी वे विद्यादान करने आगे आए हैं, जिसकी जितनी तारीफ की जाए, कम ही है।
उन्होंने नगर सहित क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को साहित्य की दिशा में लाभान्वित करने अपनी पुत्री स्व. मंजूलता की स्मृति में ‘वाचनालय’ सन् 1997 में प्रारंभ किया था, जहां साहित्य के ज्ञान पिपासु अध्ययन करते रहे हैं। वर्तमान में जगह के अभाव के कारण उस वाचनालय का संचालन नहीं हो रहा है, मगर श्री यादव ने वाचनालय की पुस्तकों और अध्ययन सामग्रियों को अपने घर के एक कमरे में स्थान दिया है, जहां समयानुसार कई लोग वहां जाकर अध्ययन करते हैं।
वे कहते है कि विद्यादान पुण्य का कार्य है और वे जब तक जीवित रहेंगे, तब तक उनका यह संकल्प जारी रहेगा। अब तक किसी भी सम्मान या पुरस्कार से वंचित श्री यादव का कहना है कि वे कर्म पर विश्वास रखते हैं और उनके किसी प्रयास से समाज में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन व आसपास के माहौल में सुधार ही, उनके लिए बड़ा पुरस्कार है। वे कहते हैं कि छात्र-छात्राओं द्वारा प्राप्त होने वाला ‘सम्मान’ सबसे बडा पुरस्कार है, जिसके सामने सभी पुरस्कार का महत्व शून्य है।
कन्या मिडिल स्कूल में बालिकाओं को पढ़ाने पर श्री यादव खुद को धन्य मानते हैं। बेटियों को पढ़ाने से उनके मन को संतोष मिलता है। वे इसी को अपना पुरस्कार मानकर चलते हैं।
श्री यादव, छात्र-छात्राओं की भलाई के लिए हमेषा आगे रहते आए हैं। षिक्षकीय जीवन में भी वे गरीब बच्चों को पुस्तकें खरीदकर देते थे। कभी जरूरत पड़ी तो परीक्षा के अलावा अन्य फीस भी भर देते। वे चाहते थे कि हर परिस्थति के बाद भी बच्चे पढ़ाई करे, किसी कारण से बच्चों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न न हो। वे छात्र-छात्राओं को षिक्षा के महत्व से अवगत कराते और उन लोगों के संस्मरण बताते, जिन्होंने षिक्षा समेत समाज के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनका ऐसा प्रयास आज भी जारी है।
वे वर्तमान षिक्षा के हालात से भी हतप्रभ हैं। वे कहते हैं कि षिक्षा के क्षेत्र में गिरावट आती जा रही है। षिक्षकों को बुद्धिजीवी माना जाता है। कुछ षिक्षकों में स्वार्थ की भावना नजर आती है, जो षिक्षा के विकास में घातक है। वे मानते हैं कि षिक्षकों को जो पारिश्रमिक मिलता है, उसके अनुरूप बच्चों को जो षिक्षा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिलती।
खरौद के मिडिल कन्या स्कूल में पिछले 7 साल से पढ़ा रहे है। उनकी पढ़ाई के बेहतर तरीके से छात्राएं भी खुष नजर आती हैं। वे कहती हैं कि यादव गुरूजी अच्छे ढंग से पढ़ाते हैं। साथ ही पढ़ाई के दौरान दी गई जानकारी याद रहती है।
इतना ही नहीं, श्री यादव की लगन और विद्यादान के प्रति कर्मठ भावना से स्कूल के षिक्षक और षिक्षिकाएं भी गदगद नजर आते हैं। कई षिक्षकों को तो श्री यादव ने ही पढ़ाया है, इसलिए षिक्षकों के मन में अपने गुरूजी के प्रति श्रेष्ठ भावना नजर आती है। स्कूल के षिक्षक सुरेन्द्र सिदार कहते हैं कि श्री यादव के षिक्षकीय अनुभव का लाभ, छात्राओं के साथ ही षिक्षकों को भी मिल रहा है। वे कहते हैं कि छग में ऐसा व्यक्तित्व शायद होंगे, इसलिए उनके हम लोग आजीवन ऋणी रहेंगे।
वे छात्र-छात्राओं के ज्ञानवर्द्धन के लिए पिछले चार साल से ‘प्रदर्षनी’ लगाते आ रहे हैं। प्रदर्षनी के माध्यम से, क्षेत्र और जिले में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ‘व्यक्तित्व’ के बारे में छात्र-छात्राओं को अवगत कराया जाता है। उनका यह कार्य भी प्रषंसनीय है। इसके साथ ही रिटायरमेंट के बाद भी स्कूल में पढ़ाने की उनकी ललक अब भी बाकी है। निष्चित ही उनका यह कर्मपथ, समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।

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