Friday, June 6, 2014

उसने खुद बनाई अपनी किस्मत की लकीर

कहा जाता है कि किसी व्यक्ति की किस्मत जन्म से तय हो जाती है, लेकिन जांजगीर-चांपा जिले के बालपुर गांव के लक्ष्मीनारायण मन्नेवार ने एक तरह से अपनी किस्मत की लकीर खुद बनाई है। दरअसल, लक्ष्मीनारायण दोनों हाथ और पैर से विकलांग है। बाजवूद, उसकी जीजिविषा देखते ही बनती है। दोनों हाथ और पैर से विकलांग होने के बाद भी लक्ष्मीनारायण ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखा है और इस तरह वह रोजी-रोटी की जुगत में औरों से कहीं आगे नजर आता है। इतना ही नहीं, वह पढ़ाई में भी तेज है और कम्प्यूटर ऑपरेटिंग में भी उसकी कोई सानी नहीं है। गरीबी परिस्थिति और अन्य कारणों से लक्ष्मीनारायण ने महज नवमीं तक की ही पढ़ाई पूरी की है।

जिला मुख्यालय जांजगीर से 15 किमी दूर चांपा इलाके के बालपुर गांव के महेत्तर लाल मन्नेवार के तीन बेटे हैं और वे लोग बेहद ही गरीब परिस्थिति में जीवनयापन कर रहे हैं। महेत्तर लाल के बड़े बेटे लक्ष्मीनारायण, हाथ-पैर से विकलांग होने से पूरा परिवार, एक अरसे तक निराष था, किन्तु लक्ष्मीनारायण ने अपनी प्रतिभा और कौषल कला से सभी का दिल जीत लिया है। लक्ष्मीनारायण की पढ़ाई नवमीं तक हुई है। गरीबी और अन्य कारणों से लक्ष्मीनारायण का पढ़ाई से नाता टूट गया, लेकिन उसका नाता सृजनषीलता से जुड़ गया। यही कारण है कि लक्ष्मीनारायण ने रायगढ़ में एक निजी संस्थान में कार्य करते मोबाइल रिपेयरिंग की जानकारी हासिल कर ली। आज उसकी वही कला, उसके जीवनयापन का जरिया बनते जा रहा है। विकलांग बेटे के निरंतर प्रगति और उपलब्धि हासिल करने से मां-बाप समेत परिवार के सदस्यों में खुषी नजर आती है।
लक्ष्मीनारायण को मोबाइल रिपेयरिंग के अलावा कम्प्यूटर चलाना भी आता है और वह विकलांगता के बाद भी जैसे-तैसे कम्प्यूटर के बटन का इस्तेमाल भी कर लेता है। धीरे-धीरे लक्ष्मीनारायण ने कम्प्यूटर में कई प्रोग्रामों पर कार्य करना भी सीख लिया है।
लक्ष्मीनारायण ने विकलांगों के हित बहुत कार्य किया है। विकलांगों के विकास और उन्हें आगे लाने के लिए सतत् प्रयास के लिए 2007 में तत्कालीन कलेक्टर बीएल तिवारी ने उसे सम्मानित भी किया था। सम्मान से जुड़ी तस्वीर लक्ष्मीनारायण के घर में आज भी दीवारों पर टंगी है, जिसे निहारते हुए लक्ष्मीनारायण की आंखों में जरूर एक सुकून नजर आता है।
बातचीत में लक्ष्मीनारायण कहता है कि मोबाइल रिपेयरिंग का कार्य उसने शुरू किया है। इस दिषा में उसे और भी प्रषिक्षण की जरूरत है, क्योंकि नई तकनीक के अनेक मोबाइल बाजार में आ चुके हैं। साथ ही शासन से मदद की आवष्कता है। वह बेहद ही गरीब परिवार से हैं। परिवार में 3 भाई है और खेती-बाड़ी बहुत कम है। गरीबी के कारण वह अपनी कला को और विस्तार नहीं दे पा रहा है। ऐसे में शासन को मदद के लिए आगे आना चाहिए।
लक्ष्मीनारायण बताता है कि  मोबाइल रिपेयरिंग में उसे कुछ दिक्कतें होती हैं। मोबाइल के अंदरूनी हिस्सों के पार्ट्स की रिपेयरिंग में परेषानी होती है, लेकिन फिर भी वह निरंतर प्रयास और मेहनत पर भरोसा रखता है।
सबसे खास बात है कि लक्ष्मीनारायण की विकलांगता पर चिंतित रहने वाले पिता महेत्तर लाल की आंखों में बेटे के गुण और उसकी उपलब्धि, अब साफ नजर आती है। वे  कहते भी हैं कि लक्ष्मीनारायण जो भी प्रयास करता है, उसमें प्रोत्साहित करते हैं। विकलांग होने के बाद भी वह काफी आगे है। लक्ष्मीनारायण के पिता को भी शासन से मदद की दरकार है।
सबसे खास बात यह है कि बालपुर गांव में किसी का मोबाइल डिस्टर्ब होता है तो सभी लोग लक्ष्मीनारायण के पास पहुंचते हैं। लक्ष्मीनारायण की काबिलियत के सभी कायल हैं। वे चाहते हैं कि लक्ष्मीनारायण, आने वाले दिनों में आगे बढ़े और बालपुर गांव का नाम रौषन करे।
लक्ष्मीनारायण ने  हाथ-पैर दोनों से विकलांग होने के बावजूद, जिस तरह से अपनी काबिलियत साबित किया है, निष्चित ही वह सषक्त समाज और उन युवाओं के लिए मिसाल है, जो शारीरिक तौर पर सक्षम होने के बाद भी असफलता के घोर अंधकार में डूबकर, मौत को गले लगा लेते हैं। आषा यही है कि आने वाले दिनों में लक्ष्मीनारायण को शासन से मदद मिल जाए, ताकि उसके जीवन के सफर में, गरीबी और दुखों का पहाड़ हट जाए।

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